मेरी मां एक कहानी है सच्ची श्रद्धा और प्यार कि… जो आपको जरूर पसंद आएगी।
बहुत समय पहले की बात है रात के आठ बजे का वक्त हो रहा होगा, सारे बाजार में लाइट जगमगा रही थी, दुकानों में चहल पहल थी सेठ और नौकर हरसंभव लोगों का ध्यान अपनी दुकान की तरफ बुलाने की भरपूर कोशिश कर रहे थे।
उसी बाजार मे एक लड़का जो सिर झुका कर चल रहा है। जूते चप्पलों की दुकान में आता है, बोल चाल से किसी गांव देहात का जान पड़ता था। उम्र करीब 17-18 साल के आस पास की होगी, शक्ल से एकदम धीर गंभीर,
दुकानदार की स्वभाव अनुसार नजर लड़के के पैरों पर गई, लड़के ने लैदर के जूते पहने थे जो एकदम पोलिस किए हुवे थे।
दुकानदार- बोलिए बाबु जी क्या सेवा करूं ?
लड़का- मुझे मेरी मां के लिए एक जोड़ी चप्पल चाहिए पर टिकाऊ होनी चाहिए।
दुकानदार- आपकी माता जी संग आई हैं क्या? उनके पैरों का माप ?
लड़के ने अपना बटुआ निकाला और उसमें से एक फोल्ड किया हुआ कागज का पन्ना निकाला जिसमें पैरो की आउट लाइन बनाई हुई थी, वो दुकानदार को दिखाया।
दुकानदार- बाबु जी अगर आप बता देते कि माता जी कितने नम्बर की चप्पल पहनती हैं तो उनके माप अनुसार चप्पल देना ठीक रहता, ऐसे में थोड़ा दिक्कत आ सकती है।
लड़का- क्या माप बताऊं साहब ! मां मेरी मेहनत मजदूरी करती है उसने जिंदगी में कभी चप्पल नहीं पहनी बाबु जी तो मेरे पैदा होने के कुछ समय बाद गुजर गए, मां ने ही मुझे मेहनत मजदूरी करके पढ़ाया लिखाया। अब नौकरी लगी है… दीपावली पर घर जा रहा हूं तो सोचा पहली तनख्वाह से मां के लिए क्या लेकर जाऊं.. तो चप्पल ले जाना ही ठीक लगा वो सारा दिन पत्थरों कांटो में ऐसे ही चलती है.. तो पहली बार उसके लिए चप्पल खरीद रहा हूं।
दुकानदार ने बढ़िया टिकाऊ चप्पल दिखाई और लड़के को पूछा “बाबु जी आठ सौ रुपए की है चलेगी क्या ?”
लड़का उतनी कीमत देने को तैयार था और खुशी खुशी हां में सर हिलाया…
दुकानदार ने सहज ही पूछ लिया “बाबु जी कितनी तनख्वाह है आपकी ? कितना बचा लेते हो ?”
लड़का- बारह हजार… 8-9 हजार रहना खाना काम पर आने जाने में खर्च हो जाता है बाकी के तीन हजार मां के लिए बचा लूंगा..
दुकानदार- अरे तो फिर आठ सौ रुपए ज्यादा नहीं होंगे..
लड़का बीच में बात काटते हुए “नहीं कुछ ज्यादा नहीं मेरी मां के पैरों से ज्यादा तो नहीं आठ सौ रुपए”
दुकानदार ने चप्पल बॉक्स में पैक कर लड़के को पकड़ाए और लड़के ने पैसे दिए और खुशी खुशी दुकान से बाहर निकल आया….
फिर पीछे से दुकानदार ने लड़के को आवाज देकर बुलाया.. और एक चप्पल का बॉक्स उसे पकड़ा कर बोला..
“ये डिब्बा मां को अपने इस बड़े भाई की तरफ से गिफ्ट देना और बोलना मां अगर आपकी एक जोड़ी चप्पल खराब निकल जाए तो ये दूसरी पहन लेना पर अब कभी नंगे पाव मत घूमना और इसे लेने से मना मत करना”
और उन्हें मेरा दिल से प्रणाम करना….🙏और भाई मैं आपसे एक चीज मांगना चाहता हूं मुझे दोगे?
लड़का – हां अगर मेरे बस में होगा तो जरूर दूंगा आप बोलो तो सही..
दुकानदार- वो पेपर जिस पर तुमने मां के पैरों का माप लिया है वो मुझे दे दो..
लड़के ने वो फोल्ड किया कागज दुकानदार को दिया और दोनों बॉक्स लेकर दुकान से बाहर निकल आया..
कागज लेकर दुकानदार ने एक अत्यंत और अद्भुत सुकून सा महसूस किया और बड़े खुश मन से वो कागज़ अपने दुकान के पूजा घर में मां लक्ष्मी की मूर्ति के पास रखा….
दुकानदार को वो कागज़ रखते हुए उसके बच्चे और नौकर देख रहे थे उत्सुकतावस बच्चो ने पूछ ही लिया…..
“इस कागज में क्या है ये कागज यहां क्यों रख रहे हो पापा”.
दुकानदार ने एक लम्बी सांस ली और आंखो से निकलते आंसुओ को पोंछते हुवे बोला –
“माँ लक्ष्मी जी के पग हैं बेटा, एक सच्चे भक्त ने इन्हें बनाया है अब देखना धंधे में बरकत होगी”