Romantic Horror Story

साल 1989 की एक ठंडी शाम थी दिन ढलने लगा था। आसमान में काले बादल होने के कारण हर तरफ घनघोर अंधेरा दिखाई दे रहा था। विजय का दिल्ली में आज पहला दिन था कोचिंग में एडमिशन तो हो गया था। लेकिन रहने के लिए कमरे का इंतजाम करने के लिए पूरा दिन दौड़ भाग में ही बीत गया था। बड़े शहर के अच्छे कॉलेज और कोचिंग में एडमिशन जितनी आसानी से मिल जाता है, बैचलर लड़कों को कमरा उतनी ही मुश्किल से मिल पाता है। विजय अभी रात बिताने के बारे में सोच ही रहा था कि अचानक एक बार फिर से जोरदार बिजली कड़कती है और विजय अपने ख्यालों से बाहर आ जाता है। वैसे तो दिल्ली में आमतौर पर हर तरफ भीड़ नजर आती है लेकिन यह आउटर दिल्ली का इलाका था। जिस बस स्टॉप पर खड़ा वह बस आने का इंतजार कर रहा था। वहां आसपास कोई भी नजर नहीं आ रहा था।

मौसम लगातार बिगड़ता जा रहा था और दूर दूर तक इंसान का कहीं कोई नाम और निशान नजर नहीं आ रहा था। अचानक ही विजय को अपने पीछे किसी के होने का एहसास होता है विजय पलट कर देखता है तो पाता है वहां पर जींस और कुर्ती पहने एक लड़की खड़ी हुई है। विजय कुछ देर तो चुपचाप खड़ा हुआ बारिश की बूंद को निहारता रहता है। फिर लड़की की तरफ देखकर कहता है इतनी रात को आपको अकेले नहीं निकलना चाहिए था। मौसम भी खराब है आपको अपने घर से किसी को बुला लेना चाहिए था। बस तो पता नहीं मिले गई या नहीं।

विजय के बात करने पर लड़की भी एक नजर विजय की ओर देखती है और उसके बाद फिर से चुपचाप खड़े होकर सड़क की ओर देखने लगती है विजय को लड़की का यह बिहेवियर थोड़ा अटपटा सा लग रहा था। इसलिए आगे कुछ भी कहे बिना विजय भी चुपचाप सड़क की तरफ देखने लगता है विजय और वो लड़की लगभग 40-45 मिनट से बस स्टॉप पर ही खड़े थे और अब रात के लगभग 9:30 बज गए थे।

विजय को जोरों की भूख भी लगी हुई थी इसलिए अब वहां खड़े रहकर बस का इंतजार करना और भी कठिन होता जा रहा था।

Girl- मुझे नहीं लगता इस रूट से कोई भी बस जाने वाली है। तुम दिल्ली के नहीं लगते कहां के रहने वाले हो।

– हां मैं एक्चुअली जौनपुर से आया हूं यहां पर यूपीएससी की तैयारी करने के लिए कोचिंग में एडमिशन लिया है। फिलहाल रहने का इंतजाम नहीं हो पाया इसलिए बस कमरे की तलाश में ही लौटते हुए देर हो गई।

Girl – तो कहां जाओगे।

– अब अब देखता हूं रेलवे स्टेशन के पास किसी लॉज में रुक जाऊंगा।

Girl – तुम्हें रहने के लिए जगह की जरूरत है, वैसे मेरी सोसाइटी में फ्लैट खाली है। अगर तुम्हें जरूरत हो तो मैं हेल्प कर सकती हूं।

– ओके आप कहां रहती है।

Girl – बस यहां से कुछ दूर पर मेरा फ्लैट है मैं वहां रेंट पर रहती हूं। आप चलिए मैं आपको अपना फ्लैट दिखा देती हूं।

– अब इतनी रात को चलना ठीक होगा क्या, आप मुझे एड्रेस दे दीजिए मैं सुबह आता हूं ना।

Girl – यह दिल्ली है यहां कभी रात नहीं होती और तुम कौन सा लड़की हो जो घबरा रहे हो। वैसे भी यहां बस स्टॉप पर रात बिताना सेफ नहीं, सामने ही कब्रिस्तान है। कई बार लोगों को पैरानॉर्मल एक्सपीरियंस हुए, भूतों पर तो विश्वास करते होंगे ना तुम, कभी महसूस किया है आधी रात को सन्नाटे के बीच किसी की प्रेजेंस को।

– क्या आप भी यह भी कोई वक्त है मजाक का।

विजय कुछ पल के लिए सोचता है और फिर लड़की के साथ चलने के लिए तैयार हो जाता है ।

– तुम नजदीक में ही रहती हो फिर आधे रात तक बस स्टॉप पर क्यों खड़ी थी। तुम तो आसानी से वॉक करके जा सकती थी ना,

Girl – मैं बस अपनी सहेली का इंतजार कर रही थी लेकिन लगता है अब वो नहीं आएगी। अपने बॉयफ्रेंड के साथ ही रुकेगी आज, वैसे भी मैं किसी से नहीं डरती। दिशा नाम है मेरा, बरेली की रहने वाली हो।

कुछ दूर तक पैदल चलने के बाद विजय और दिशा एक पुरानी सी कॉलोनी के पास पहुंच गए थे। यह कोई सरकारी कॉलोनी नजर आ रही थी। कॉलोनी के एंट्रेंस पर एक लोहे का बड़ा सा दरवाजा था। जिसका पेंट जगह-जगह से उखड़ा हुआ था। कॉलोनी बड़ी पुरानी और सुनसान लग रही है।

– थोड़ी अजीब नहीं है तुम यहां रह लेती हो।

disa – हां यहां ज्यादा लोग नहीं रहते, खाली है काफी मकान। यह तीन नंबर वाला मकान खाली है। तुम चाहो तो आज वहीं रुक जाओ, मैं भी यही आगे जो दो मकान छोड़कर घर दिख रहे हैं ना, वहां रहती हूं।

पूरी कॉलोनी अंधेरे में डूबी हुई थी हर तरफ सन्नाटा था। और झिंगुर की तीखी सी आवाज के अलावा वहां कोई आवाज सुनाई नहीं पड़ रही थी। दिशा को हाथ से बाय करते हुए विजय तीन नंबर वाले मकान का दरवाजा खोलकर अंदर जाता है। और जैसे ही लाइट्स ऑन करता है उसे अपने सामने दिशा खड़ी हुई दिखाई देती है।

– दिशा तुम तुम तो चली गई थी ना, अंदर कैसे आई तुम

disa – अरे तुम्हारे साथ ही तो अंदर आई हूं। अंधेरे में ध्यान नहीं दिया तुमने, अच्छा सुनो यहां पर एक बेड भी है। एक हफ्ते पहले ही खाली हुआ है यह रूम। अभी रहने लायक होगा तुम्हारे पास रहने की जगह नहीं है। इसलिए आज रात तुम यहीं सो जाना सुबह मिलते हैं।

विजय कभी सोच भी नहीं सकता था कि दिल्ली जैसे अनजान शहर में पहले ही दिन कोई खूबसूरत लड़की उसे मिल जाएगी और उसकी इतनी मदद भी करेगी रात बिताने के लिए, विजय अंदर जाकर बेड पर लेट जाता है। अगले दिन सुबह उसके सोकर उठने के कुछ देर बाद ही दिशा उसे नजर आती है।

disa – तुम अपनी कोचिंग हो आओ। अब इस घर से कोई तुम्हें निकाल नहीं पाएगा तुम निश्चिंत होकर यहां रह सकते हो लेकिन किराया फ्लैट मेरे जानने वाले का ही है। तुम चाहो तो मुझे ही किराया दे देना, मैं दे दिया करूंगी। मैं बैंक की कोचिंग करती हूं दोपहर में दो घंटे के लिए जाती हूं। उसके बाद जब चाहे मुझसे मिलने आ सकते हो। मेरा फ्लैट नंबर छह है एक बात का ख्याल रखना यहां पर आउटसाइडर्स अलाउड नहीं है। किसी बाहर वाले को इस कॉलोनी में लेकर कभी मत आना और हां कॉलोनी के लोगों को भी डिस्टरबेंस बिल्कुल पसंद नहीं है। इसलिए कभी भी किसी का दरवाजा मत खटखटाना।

– ओके

विजय को दिल्ली रास आ गई थी हर रोज सुबह जब वो उठता उसे दिशा के हाथ का लिखा हुआ गुड मॉर्निंग नोट उसके दरवाजे पर लगा मिलता वे दोनों अक्सर साथ में बैठकर घंटों बातें करते और अपने भविष्य के सपने सजाते।

कुछ दिन बाद

– दिशा कॉलोनी में इतना सन्नाटा रहता है बाकी मकान खाली है क्या, कभी कोई आवाज सुनाई नहीं देती कभी कोई आता जाता नजर नहीं आता।

disa- क्या बात है तुम्हारा मन नहीं लगता क्या यहां पर, बाकी लोगों की याद क्यों आ रही है तुम्हें। बताया था ना यहां रहने वाले लोग डिस्टरबेंस पसंद नहीं करते इसलिए ज्यादातर घर के अंदर ही रहते हैं।

– नहीं नहीं मन लगने जैसी कोई बात नहीं है तुम हो ना मेरे पास बस मैंने ऐसे ही पूछ लिया। विजय ने महसूस किया कि दिशा की आंखें इस बात के चब में थोड़ी बदल सी गई है और लहजा थोड़ा सख्त हो गया है। शायद दिशा पजेसिव हो रही है, उसे मेरा किसी और के बारे में पूछना अच्छा नहीं लगा। हर गुजरते दिन के साथ विजय दिशा के और नजदीक आता जा रहा था। जनवरी की खूबसूरत ठंडी शाम थी विजय अपने फ्लैट की छत पर दिशा के कंधे पर सर रखकर बैठा हुआ था।

– दिशा वैसे तो तुम बस दो मकान छोड़कर ही रहती हो लेकिन मुझसे अब यह दो मकान जितनी दूरी बर्दाश्त नहीं होती एक बात सच सच बताओ प्यार करती हो ना मुझसे।

disa- बहुत ज्यादा तुम सोच भी नहीं सकते उतना प्यार करती हूं तुम्हें पाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हूं।

– मैं सोच लो प्यार करोगे तो हदों को पार करके निभाना पड़ेगा वरना हम दोस्त ही ठीक है। अब बस तो हो गया फैसला अलग-अलग फ्लाइट क्यों हम एक साथ रहते हैं ना,

दिशा विजय के कंधे पर सर रखकर बैठी हुई थी और विजय दिशा के लंबे बालों से खेलते हुए उससे बातें कर रहा था तभी उसने देखा कुछ दूरी पर एक आदमी छत पर खड़ा उसे ही घूर रहा है।

– चलो नीचे चलते हैं पता नहीं कौन है वो आदमी, जब भी मैं तुम्हारे साथ यहां बैठता हूं ना जाने क्यों कहा जाने वाली नजरों से घोरा करता है। अरे पता नहीं आदमी है या भूत ऐसे आंखें फाड़कर कौन देखता है तुम थोड़ा सावधान रहना।

disa – अरे मुझे उससे कोई खतरा नहीं है तुम चिंता मत करो, छोड़ो उसे।

विजय के कहने पर दिशा अब उसके फ्लैट में ही शिफ्ट हो गई थी दोनों लिवन में रहने लगे थे और एक दूसरे के साथ दोनों ही बहुत खुश थे।

अरे यार कुछ सि खत्म होते ही तू ऐसे गायब हो जाता है जैसे गधे के सर पर सिंह अरे भाई अब तो एक साल बीतने को आया अब तो हमारे साथ थोड़ा टाइम बिता लिया करो इतने भी बुरे नहीं है हम कि तू हमारे साथ दो बात भी ना कर सके वो क्या है ना कि दिशा की कोचिंग दिन में ही खत्म हो जाती है वो बेचारी पूरा दिन मेरा ही वेट करती रहती है अकेले परेशान हो जाती है इसलिए मैं जल्दी घर भागता हूं दिशा मतलब तुम शादीशुदा हो अरे नहीं शादीशुदा नहीं हूं दिशा मेरी गर्लफ्रेंड है हम दोनों साथ में ही रहते हैं ओ भाई गजब बात कर रहे हो मतलब बिन फेरे हम तेरे तब तो मिलना पड़ेगा भाई भाभी जी से देखो हमारे जैसे बेरोजगार बंदे पर इतना भरोसा करने वाली लड़की से एक मुलाकात तो बनती है क्यों मोहन की बात सुनकर विजय उसे अपने साथ कमरे पर ले जाने के लिए तैयार हो जाता है सोसाइटी के गेट पर पहुंचकर मोहन देखता है कि सामने एक पुरानी सी टूटी फूटी खंडहर नुमा सोसाइटी दिखाई दे रही है सोसाइटी में में अंदर जाने के लिए गेट है जिस पर झाड़ियां लिपटी हुई हैं अद खुले गेट से अंदर जाते हुए मोहन हैरानी से चारों ओर देख रहा था तुम इस सोसाइटी में रहते हो मजाक कर रहे हो ना मेरे साथ सुबह से मजाक करने के लिए मैं ही मिला हूं क्या तुम्हें नहीं यार मजाक की क्या बात है मैं सच में इसी सोसाइटी में रहता हूं जहां तक मैं जानता हूं यह सोसाइटी पिछले 6 सा साल से खाली पड़ी हुई है अरे यार तू आउटसाइडर है लेकिन हम तो यहीं दिल्ली में पैदा हुए हैं है ना हमें बेवकूफ बनाएगा अरे तुझे गलत इंफॉर्मेशन मिली है यार तू चल मैं तुझे दिखाता हूं ना मेरा रूम बेवकूफ क्यों बनाऊंगा मोहन हैरानी से सोसाइटी के मकानों को देख रहा था तभी मकान नंबर तीन के सामने जाकर विजय रुक जाता है आ गया मेरा फ्लैट चल अब अंदर चलते हैं मोहन अंदर जाता है तो देखता है पूरा फ्लैट बहुत ही गंदा था हर तरफ मकड़ी के जाले लगे हुए थे सीलन से पूरी दीवारें काली पड़ गई थी और धूल और मिट्टी ने घर के फर्श को पूरी तरह से ढका हुआ था विजय भाई सही मजाक कर लेते हो इस घर की हालत देख रहे हो इस मकान की इतनी बुरी हालत है कि यहां पर इंसान तो क्या जंगली जानवर भी नहीं रहेगा और तुम कह रहे हो कि तुम इस मकान में रहते हो मुझे खुद अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा है यार मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं मैं वाकई पिछले एक साल से इसी मकान में रह रहा हूं और जैसा तुम्हें यह मकान दिख रहा है ना यह ऐसा बिल्कुल भी नहीं है मुझे खुद समझ में नहीं आ रहा है कि अभी कुछ घंटे पहले जब मैं इसे छोड़कर गया था तब ये ऐसा बिल्कुल भी नहीं था कुछ घंटे में इस मकान की हालत इतनी कैसे बदल गई अरे यार बिल्कुल साफ सुथरा चमकता हुआ घर है यह दिशा घर की बहुत केयर करती है कहां है तेरी दिशा दिखाई तो नहीं दे रही तू तो कह रहा था कि तेरे रूम में ही रहती है अरे ऐसे घर में कौन लड़की रहेगी तेरा मानसिक संतुलन तो नहीं बिगड़ा हुआ है यार अभी भी सच-सच बता तू यह सब मजा कर रहा है ना अरे यार मेरा खुद दिमाग काम नहीं कर रहा है यह सब मैं क्या देख रहा हूं विजय के इतना कहते ही अचानक ही घर में जल रहा एक मात्र बल्ब फ्लकचुएट करने लगता है और एक ठंडी हवा का झोंका उनके शरीर को छूकर निकल जाता है कमरे के अंदर की हवा बोझिल सी होने लगती है और अंदर के कमरे से खटखट की आवाज आने लगती है लगता है अंदर वाले रूम में है दिशा चल देखते हैं विजय अंदर रूम में जाता है तो वहां भी हर तरफ गंदगी और सीलन ही नजर आती है तभी उन्हें बाहर के कमरे से खटखट की आवाज आने लगती है विजय अपने दोस्त को लेकर हैरानी से बाहर के कमरे में आता है तभी उसे एक बार फिर अंदर के कमरे का दरवाजा पीटने की आवाज सुनाई देने लगती है भाई मुझे लगता है कि हमें यहां से चलना चाहिए मुझे यहां कुछ ठीक नहीं लग रहा तुझे जरूर कुछ तो गलतफहमी हुई है मेरी बात मान तू कुछ दिन के लिए अपने घर हो आ तेरी तबीयत सही नहीं है ऐसी हालत में तेरा यहां रुकना सही नहीं होगा एक मिनट रुक मुझे याद आया सुबह ही दिशा ने मुझे खाना पैक करके दिया था लेकिन मैं टिफिन को ले जाना भूल गया अभी भी वो टिफिन किचन में ही रखा होगा रुक जा विजय दौड़ता हुआ रसोई में जाता है तो देखता है कि वहां पर वाकई एक टिफिन रखा हुआ है यह देख मैंने कहा था ना यह रहा मेरा टिफिन तू इसे खोल कर देख तुझे इसमें पास्ता मिलेगा मोहन जैसे ही टिफिन को खोलता है डब्बा उसके हाथ से छूट जाता है टिफिन के अंदर रखे हुए खाने में से गंदी बदबू आ रही थी और उसके अंदर छोटे-छोटे कीड़े रेंग रहे थे अच्छा चल एक बार पड़ोसी से पूछ कर देखते हैं विजय और मोहन बारी से सारे मकानों पर जाते हैं लेकिन सभी मकानों की हालत बिल्कुल एक जैसी थी सभी मकान खाली थे और उनमें गंदगी के सिवा कुछ नजर नहीं आता था अब मैं तुझे कैसे यकीन दिलाऊंगा को घूर घुर कर देखता था तू चल वो बताएगा तब तो तू मानेगा ना कि दिशा और मैं इसी फ्लैट में रहते थे मोहन विजय के चेहरे पर एक अजीब सी बेचैनी महसूस कर पा रहा था ऐसा लगता था वह किसी भी पल बस रो पड़ेगा विजय का मन रखने को मोहन उसके साथ सामने वाली कॉलोनी में जाकर एक घर का दरवाजा खटखटाने लगता है कुछ ही मिनटों में एक सांवला सा बड़ी-बड़ी मूछों वाला व्यक्ति दरवाजा खोलता है यही है यही है वो सर प्लीज सच सच बताइए आप मुझे जानते हैं या नहीं विजय की बात सुनकर उस आदमी ने एक नजर विजय को ऊपर से नीचे तक देखा और फिर उसके चेहरे के भाव बदलने लगे बताइए ना सर दिस इज वेरी इंपॉर्टेंट अरे शर्म आ रही है इस इंसान को यह बात कबूल में कि हर रोज यह एक प्रेमी जोड़े को छिप छिप कर देखता था इतना ही नहीं मैंने इसकी नजर में दिशा के लिए कुछ अलग ही महसूस किया है अरे पागल हो क्या तुम आज तक तो बस मुझे शक था लेकिन आज यकीन भी हो गया कि सिर फिरे हो तुम यह लड़का रोज सामने जो डीडीए के खाली फ्लेट पड़े हैं ना उसकी छत पर बैठकर पता नहीं अकेले में क्या बड़बड़ा रहता था ऐसे बिहेव करता था जैसे यह किसी के साथ बैठा हो अकेले में ही हंसता बड़बड़ा आता और फिर कई बार मेरी तरफ देखकर गुस्से में मुंह फेर कर नीचे चला जाता मुझे तो यह कोई सरफिरा पागल ही लगता था जो उन खाली पड़े खंडहरों की छत पर ना जाने क्या करने जाता था मुंह बंद करो अपना झूठ बोलता है यह तूने मुझे देखा लेकिन दिशा नहीं दिखाई दी तुझे अरे मैं रोज उसके साथ ही जाता था छत पर भाई इलाज कराओ इसका विजय दिशा कोई है ही नहीं किसी ने नहीं देखा है आज तक उसे तू संभाल खुद को यार इस बारे में जितना सोचेगा ना उतना ही खुद को परेशान करेगा देख मैं तेरा दोस्त हूं तेरा बुरा नहीं चाहता इस समय तू बस कुछ दिन के लिए अपने घर चला जा और घर जाकर अपनी फैमिली को सब सच सच बता देना जो कुछ तुमने इतने दिन अपनी आंखों से देखा वह कुछ और नहीं बस एक छलावा था हम तेरे दुश्मन नहीं है और यह अंकल भी वही कह रहे हैं जो उन्होंने देखा है विजय को कुछ समझ नहीं आ रहा कि जो कुछ व अब देख रहा है वह झूठ है या जो पिछले एक साल से उसने देखा या जिया है वह झूठा था अपने आप को यह समझा पाना कि पिछले एक साल से वह एक भ्रम एक लावे में जी रहा था विजय के लिए आसान बिल्कुल भी नहीं था विजय को सब कुछ घूमता हुआ सा नजर आ रहा था विजय भाई जिस जगह को तुम अपना कमरा बता रहे हो ना वह रहने लायक स्थिति में बिल्कुल भी नहीं है तुम ऐसा करो मेरे साथ मेरे कमरे में चलो वहीं से अपने गांव के लिए निकल जाना विजय ने हाम गर्दन हिलाई और उसके बाद मोहन उसे अपने साथ अपने कमरे पर ले गया अगले दिन सुबह ही मोहन ने उसे उसकी गांव जाने वाली बस में बिठा दिया था मोहन अपने गांव जरूर आ गया था लेकिन जैसे अपने आप को ही भूल गया था व हर समय बस अकेले में बैठा पेंसिल से एक चेहरा बनाने की नाकाम कोशिश करता रहता विजय को अपने गांव लौटे एक महीने का समय बीत गया था घर में सभी लोग उसे समझा समझा कर थक गए थे कि दिशा बस उसके मन का वहम था और कुछ भी नहीं लेकिन विजय उनकी बात मान को तैयार नहीं था ना तो अब उसका पढ़ाई में मन लगता था और ना ही वह किसी से बातचीत किया करता इसी बीच एक सरकारी नौकरी में उसका चयन हो जाता है विजय नौकरी जॉइन कर लेता है काम के दबाव और गुजरते समय के साथ वह धीरे-धीरे सामान्य होने लगता है आज फिर 20 दिसंबर था वही दिन जब पहली बार विजय दिशा से मिला था ना जाने क्यों आज विजय को बार-बार दिशा का ख्याल आ रहा था देर रात उसे ऐसा लगा जैसे दिशा उसे आवाज लगा रही है विजय ने उठकर कमरे के बाहर देखा लेकिन बाहर कोई नहीं था अचानक एक बार फिर उसे छत के ऊपर से दिशा की आवाज सुनाई देती है विजय पागलों की तरह दौड़ते हुए छत पर पहुंचता है तो देखता है सामने दिशा खड़ी उसे देखकर मुस्कुरा रही है विजय दौड़कर उसका हाथ थाम लेता है तुम आ गई दिशा मुझे पता था तुम हो कहां चली गई थी मुझे छोड़कर चलो मैं सबको तुमसे मिलाता हूं विजय की बात सुनकर एकाएक दिशा विजय का हाथ छोड़ देती है और धीरे-धीरे अपने कदम पीछे की ओर बढ़ाने लगती छत के आखिरी छोर पर पहुंचकर दिशा ने एक कदम और पीछे की ओर बढ़ाया और छत से च ह ग विजय के मुंह से एक जोरदार चीख निकली और वह पसीने में लथपथ बिस्तर से उठकर बैठ गया इतने दिनों के बाद अचानक दिशा का ख्याल आया यह क्या हो रहा है मेरे साथ विजय की आवाज सुनकर उसकी मां दौड़ती हुई उसके कमरे में आती है क्या हुआ बेटा सब ठीक है ना हां मैं ठीक हूं मां आप सो जाओ मैंने साफ सुना यह दिशा कहकर चिल्लाया था जरूर वो चुड़ैल इसके सब में आई होगी अगले दिन सुबह बेटा देख तो एक रिश्ता आया है तेरे लिए बरेली की लड़की है अच्छी लग रही है हमें तो तू देखकर बता ना कैसी है और देख बेटा जब तक तू जीवन में आगे नहीं बढ़ेगा ना वो अतीत के बुरे ख्याल तुझे ऐसे ही सताते रहेंगे ठीक है मां जैसा आप ठीक समझो मुझे मंजूर है विजय के हां बोलने पर जल्द ही विजय की पूरी फैमिली सगाई के लिए दृष्टि के घर पहुंच जाती है जाओ बेटा दामाद जी को घर दिखा कर ले आओ दृष्टि विजय को ऊपर का फ्लोर दिखाने ले जाती है ऊपर के कमरे में जाकर एकाएक एक तस्वीर को देखकर विजय के पांव वहीं जम जाते हैं अरे क्या हुआ यह मेरी दीदी दिशा की तस्वीर है 5 साल पहले पढ़ाई करने के लिए दिल्ली गई थी वह किसी लड़के से प्यार करती थी लेकिन उसने धोखा दिया और उन्हें छोड़कर चला गया दीदी इंतजार करती रही उसका लेकिन जब वह लौट कर नहीं आया तो उन्होंने हताश होकर आत्महत्या कर ली मौत मौत हो गई है इनकी कब मतलब क कब हुई 4 साल पहले लेकिन वो हमारे आसपास ही है मैं अपनी दी को महसूस कर सकती हूं बहुत गहरा बंड था हम दोनों में क्या हुआ आप ठीक तो है ना प्लीज नीचे चले मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा पता नहीं यह इत्तेफाक था या कुछ और दिशा की बहन दृष्टि से ही विजय की सगाई हुई थी विजय बहुत बेचैनी महसूस कर रहा था लेकिन चाहकर भी किसी को कुछ कह नहीं पा रहा था और कहता भी तो कौन यकीन करता उसकी बात पर यूं ही बेचैनी में महीने भर का समय बीता और शादी का दिन भी आ गया शादी के बाद दृष्टि विजय के कमरे में बैठी घूंघट में चेहरा छिपाए उसका इंतजार कर रही थी कमरे में विजय के कदमों की आहट होती है तो दृष्टि थोड़ा और संभल कर बैठ जाती है कुछ पलों के बाद विजय दृष्टि का घूंघट उठाता है मैंने कहा था ना जान तुम्हारा साथ में मर कर भी नहीं छोडूंगी बहुत लंबा इंतजार कराया तुमने अब कोई भी हमें अलग नहीं कर पाएगा इतना कहकर दृष्टि जोर-जोर से हंसने लगती है विजय को पहचानते देर ना लगी कि यह आवाज दृष्टि की नहीं बल्कि दिशा की है कांपते हाथों से वह बिस्तर से उठकर दूर खड़ा हो गया था दृष्टि की पुतलियां धीरे-धीरे सफेद हो रही थी चेहरा भयावह और निस्तेज दिखाई पड़ रहा था धीमे कदमों से वह विजय की ओर बढ़ रही थी और विजय कांपते शरीर के साथ जमीन पर गिर गया था प्यार करती हो ना मुझसे बहुत जदा तुम सोच भी नहीं सकते उतना प्यार करती हूं तुम्हें पाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हूं मैं सोच लो प्यार करोगे तो हदों को पार करके निभाना पड़ेगा वरना हम दोस्त ही ठीक है अब बस तो हो गया फैसला यह कहानी आपको अच्छी लगी हो तो हमें follow करके 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