How Companies FOOL You

कैसे कंपनियां उपभोक्ताओं को कर रही हैं गुमराह?

जनवरी 2025 में प्याज, अंगूर, और मैगी के पैकेट्स के आकार से लेकर स्मार्टफोन की बैटरियों तक, कंपनियों की रणनीतियों ने उपभोक्ताओं को चौंका दिया। क्या आपने कभी सोचा है कि क्यों आपकी पसंदीदा चीज़ों का आकार छोटा होता जा रहा है, लेकिन उनकी कीमतें जस की तस बनी हुई हैं या बढ़ रही हैं? या फिर क्यों आपका स्मार्टफोन सॉफ्टवेयर अपडेट के बाद अचानक धीमा हो जाता है? यह लेख आपको इन सवालों के पीछे की सच्चाई बताएगा।


श्रिंकफ्लेशन: वही कीमत, कम मात्रा

कभी 250 ग्राम बिस्किट्स वाले पैकेट अब 200 ग्राम में मिलते हैं, और मैगी के पैकेट्स का आकार भी 80 ग्राम से घटकर 55 ग्राम हो गया है। थम्स अप और कोका कोला की छोटी बॉटल्स का आकार भी 250 ml से 200 ml कर दिया गया है। इसे श्रिंकफ्लेशन कहते हैं, जिसमें कंपनियां कीमतें बढ़ाने के बजाय उत्पादों का आकार छोटा कर देती हैं ताकि उपभोक्ताओं को कीमत में वृद्धि महसूस न हो।

मजेदार तथ्य:
कंपनियां अपने प्रोडक्ट्स के दाम तो वही रखती हैं, लेकिन उनका साइज या मात्रा धीरे-धीरे कम कर देती हैं। उदाहरण:

  • टोबलरोन चॉकलेट: 2016 में वजन 400 ग्राम से 360 ग्राम कर दिया और टुकड़ों के बीच की दूरी बढ़ा दी।
  • मैगी: पहले 80 ग्राम की पैकिंग थी, अब 55 ग्राम की हो गई है।
  • थम्स अप और कोका कोला: ₹10 में आने वाली बॉटल्स 250 ml से 200 ml हो गई हैं।
  • लेज़ चिप्स में चिप्स कम हो गए और हवा ज्यादा हो गई है।
  • कैडबरी डेरी मिल्क: 2013 में 10% साइज घटाया गया और थिकनेस कम कर दी गई।

प्लांड ऑब्सोलेसेंस: जानबूझकर जल्दी खराब होने वाले प्रोडक्ट्स

स्मार्टफोन की बैटरी सिर्फ 3-4 साल ही क्यों चलती है? क्यों उन्हें आसानी से बदला नहीं जा सकता? इसका जवाब है प्लांड ऑब्सोलेसेंस। कंपनियां जानबूझकर ऐसे उत्पाद बनाती हैं जो एक निर्धारित समय के बाद खराब हो जाएं ताकि आपको नया उत्पाद खरीदने पर मजबूर होना पड़े। यह एक ऐसी रणनीति है जिसमें उत्पादों को जानबूझकर इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि उनकी उम्र सीमित हो और उपभोक्ताओं को जल्द ही नया उत्पाद खरीदने पर मजबूर होना पड़े। उदाहरण:

इंक की मात्रा कम कर दी जाती है लेकिन उसे “एक्स्ट्रा लार्ज” कहकर बेचा जाता है।
स्मार्टफोन्स: तीन-चार साल में बैटरी इतनी खराब हो जाती है कि नया फोन लेना पड़ता है।
सॉफ्टवेयर अपडेट्स: पुराने फोन्स को नए सॉफ़्टवेयर अपडेट्स के बाद जानबूझकर स्लो कर दिया जाता है, ताकि ग्राहक नया मॉडल खरीदें।
2018 में इटली और 2020 में फ्रांस ने एप्पल और सैमसंग पर इसी कारण से फाइन लगाया था।
प्रिंटर्स: कंपनियां प्रिंटर सस्ते में बेचती हैं, लेकिन इंक कार्ट्रिज महंगी होती है।
सिर्फ़ उसी कंपनी की इंक का उपयोग हो, इसके लिए माइक्रोचिप्स लगाकर थर्ड पार्टी इंक को ब्लॉक किया जाता है।

उदाहरण:

  • 2018 में इटली की प्रतिस्पर्धा प्राधिकरण ने पाया कि कुछ सॉफ्टवेयर अपडेट्स पुराने स्मार्टफोंस को धीमा कर रहे थे, जिसके कारण एप्पल और सैमसंग पर जुर्माना लगाया गया।
  • 2020 में फ्रांस ने एप्पल पर €25 मिलियन का जुर्माना लगाया क्योंकि उसने उपभोक्ताओं को यह नहीं बताया कि अपडेट्स से फोन स्लो हो जाएंगे।

डायनामिक प्राइसिंग: बैटरी लो, कीमत हाई!

कल्पना कीजिए, आपके फोन में सिर्फ 5% बैटरी बची है, और आपको जल्दी से टैक्सी बुक करनी है। लेकिन जैसे ही आप ऐप खोलते हैं, किराया सामान्य से दोगुना दिखता है। यह सिर्फ सर्ज प्राइसिंग नहीं है, बल्कि यह डायनामिक प्राइसिंग का हिस्सा है, जहां ऐप्स आपके फोन की बैटरी स्तर को ट्रैक करके कीमतें बढ़ा देती हैं।

साबित कैसे हुआ?

  • 2023 में बेल्जियम के एक अखबार ने एक स्टडी की जिसमें पाया गया कि 12% बैटरी वाले फोन पर हमेशा अधिक किराया चार्ज किया गया, जबकि 84% बैटरी वाले फोन पर कीमतें सामान्य थीं।
  • 2025 में इंजीनियर हब के फाउंडर ऋषभ सिंह ने भी इस तरह के डायनामिक प्राइसिंग का अनुभव किया।

रेज़र-ब्लेड मॉडल: सस्ता प्रोडक्ट, महंगे ऐड-ऑन

कंपनियां एक मुख्य उत्पाद को सस्ते में बेचती हैं, लेकिन उसके साथ आने वाले एक्सेसरीज़ या कंज्यूमेबल्स को महंगे दामों पर बेचकर मुनाफा कमाती हैं।

उदाहरण:

  • प्रिंटर सस्ते मिलते हैं, लेकिन उनकी इंक कार्टेज बेहद महंगी होती हैं। कंपनियां अपने प्रिंटर में चिप्स लगाती हैं ताकि सिर्फ उनकी ही इंक इस्तेमाल हो सके, और थर्ड पार्टी इंक काम न करें।
  • 2018 में नौ प्रिंटर कंपनियों ने 900 फर्मवेयर अपडेट्स भेजे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कस्टमर केवल उनकी महंगी इंक ही इस्तेमाल करें।

भ्रामक मार्केटिंग: बड़े-बड़े दावे, खोखले वादे

आजकल एआई शब्द का इस्तेमाल हर जगह हो रहा है। फोन से लेकर वाशिंग मशीन तक, हर चीज में ‘एआई’ जोड़ दिया गया है, चाहे वह असल में प्रोग्राम्ड सेटिंग्स ही क्यों न हो।

  • एक वॉशिंग मशीन ब्रांड ने अपने प्रोडक्ट को ‘एआई पावर्ड’ बताया, जबकि असल में वह केवल बेसिक टेम्परेचर सेटिंग्स का इस्तेमाल कर रही थी।
  • टूथपेस्ट ब्रांड्स दावा करते हैं कि “डेंटिस्ट की पहली पसंद” हैं, लेकिन असल में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अनुसार, कोई भी डॉक्टर किसी कमर्शियल प्रोडक्ट को एंडोर्स नहीं कर सकता।

समाधान क्या है?

  1. जागरूकता: उपभोक्ताओं को जागरूक होना पड़ेगा और प्रोडक्ट्स के लेबल्स को ध्यान से पढ़ना चाहिए।
  2. सरकार की भूमिका: यूरोपियन यूनियन ने 2021 में “राइट टू रिपेयर” कानून बनाया:
    • कंपनियों को कम से कम 10 सालों तक प्रोडक्ट के रिप्लेसमेंट पार्ट्स उपलब्ध कराने होंगे।
    • प्रोडक्ट्स को इस तरह से डिजाइन करना होगा कि उन्हें आसानी से रिपेयर किया जा सके।
    • USB-C चार्जर को यूनिवर्सल बनाना इसी का परिणाम है।
    • ऐसे नियम भारत और अन्य देशों में भी लागू किए जाने चाहिए ताकि उपभोक्ताओं को बेहतर गुणवत्ता और लंबे समय तक चलने वाले उत्पाद मिलें।
  3. वैकल्पिक विकल्प: उन कंपनियों को सपोर्ट करें जो पारदर्शिता के साथ काम करती हैं और लॉन्ग-लास्टिंग प्रोडक्ट्स बनाती हैं।

निष्कर्ष: बदलाव की जरूरत है!

आज के युग में जहां तकनीक का विकास हो रहा है, वहीं कंपनियां अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए उपभोक्ताओं को भ्रमित कर रही हैं। यह समय है कि हम जागरूक बनें और समझदारी से खरीदारी करें। सरकार को भी कड़े कानून बनाकर उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करनी चाहिए। कंपनियां जानबूझकर प्रोडक्ट्स को इस तरह डिजाइन करती हैं कि उनकी उम्र कम हो, या वे जल्दी खराब हो जाएं, ताकि उपभोक्ता को नया खरीदना पड़े। इसके अलावा, वे कीमतें छुपाने के लिए प्रोडक्ट का साइज कम करती हैं, भ्रामक मार्केटिंग करती हैं, और डेटा का दुरुपयोग कर ज्यादा मुनाफा कमाती हैं।
इस समस्या का समाधान सरकारी स्तर पर कड़े कानून बनाकर और उपभोक्ताओं में जागरूकता बढ़ाकर ही संभव है।

आपका क्या अनुभव रहा है इन रणनीतियों से? क्या आपने भी कभी महसूस किया है कि आपका फोन अपडेट के बाद धीमा हो गया हो या कोई प्रोडक्ट जल्दी खराब हो गया हो? कमेंट में अपनी राय ज़रूर बताइए!

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