Navaratri || नवरात्रि: नई शुरुआत और नए उत्साह की शक्ति

नवरात्रि 

नवरात्रि हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है जिसमें नवरात्रि  का अर्थ होता है 9 रातें। नवरात्रों के दौरान देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है तथा दसवां दिन दशहरा के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि, भारतीय समाज के लिए एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है जो नौ दिनों तक धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान दुर्गा की उपासना का अवसर है और लोग इसे बड़े श्रद्धा भाव से मनाते हैं। नवरात्रि न केवल आध्यात्मिक बल्कि शारीरिक और आत्मिक उन्नति के लिए भी एक अद्वितीय मौका प्रदान करता है।

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नवरात्रि का महत्व:

नवरात्रि का उत्सव विभिन्न राज्यों और समुदायों में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है, लेकिन इसका मूल उद्देश्य सभी में एक है – भगवानी दुर्गा की उपासना और उनकी कृपा को प्राप्त करना। इसके अलावा, नवरात्रि एक आत्मा सुधारने और नई ऊर्जा को अपनाने का अद्वितीय मौका प्रदान करता है।
 
नवरात्रि एक उत्सव है जो सदाचार, भक्ति और साधना की महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह समय है जब हम अपने आत्मा की ऊर्जा को उन्नति देने के लिए शक्तियों का आशीर्वाद लेते हैं और नये उत्साह से नये जीवन की शुरुआत करते हैं। इस नवरात्रि को एक नई शुरुआत की शक्ति के रूप में स्वीकार करें और अपने जीवन को नई ऊर्जा और उत्साह से भरें।

देवी दुर्गा: शक्ति की प्रतिक

नवरात्रि का मूल उद्देश्य देवी दुर्गा की पूजा और अर्चना है। दुर्गा देवी भगवान शिव और पार्वती की संयुक्त स्वरूपिणी हैं जिन्होंने राक्षस समुदय के नाश के लिए युद्ध किया था। इस पर्व में विशेष रूप से नवदुर्गाओं की पूजा होती है, जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं और वह शक्तियों के रूप में मानी जाती हैं।

नवरात्रि में महालक्ष्मी मां सरस्वती और मां काली के नौ रूपों की पूजा होती है जिन्हें हम नवदुर्गा कहते हैं।

नवरात्रि कब मनाते हैं।

  • नवरात्रि की शुरुआत अश्वनी मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होते हैं। हिंदी कैलेंडर के अनुसार नवरात्रि साल में 4 बार मनाई जाती है। दो मुख्य नवरात्रि दो गुप्त नवरात्रि । 
  • मुख नवरात्रि चैत्र मास में और अश्विन मास में मनाई जाती हैं।
  • साल 2023 नवरात्रि की शुरुआत 15 अक्टूबर 2021 से 23 अक्टूबर 2021 तक है।

नवरात्रि में नौ देवियों की पूजा होती है जो हैं।

  1. शैलपुत्री – पहाड़ों की पुत्री – पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है करो देवी दुर्गा के नौ रूपों में प्रथम दुर्गा हां यही है। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा।
  2. ब्रह्मचारिणी – ब्रह्मचारिणी – नवरात्र पर्व के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी मां की पूजा अर्चना की जाती है। ब्रह्मा का अर्थ है तपस्या और चारणी का अर्थ है आचरण करने वाली यानी कि तप का आचरण करने वाली मां की पूजा दूसरे दिन की जाती है। इनके एक हाथ में माला तथा दूसरे हाथ में कमंडल रहता है।
  3. चंद्रघंटा – चांद की तरह चमकने वाले – मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम है चंद्रघंटा। नवरात्रि  के 9 दिनों में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व इस दिन साधक का मन मणिपूर चक्र में प्रविष्ट होता है।
  4. कूष्मांडा – पूरा जग जिनके पैरों में – चौथा दिन मां कूष्मांडा देवी के रूप में उपासना की जाती है। इस ऐसे देना दिन पवित्र और साफ मन से देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा करनी चाहिए।
  5. स्कंदमाता – कार्तिक स्वामी की माता – नवरात्रि का पांचवा दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है स्कंदमाता मोक्ष के द्वार खोलने वाली तथा समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने वाली है।
  6. कात्यायनी – कात्यायन आश्रम में जन्मे – नवदर्गा के नौ रूपों में से छठ में रूप में कात्यायनी मां की पूजा की जाती है।
  7. कालरात्रि – काल का नाश करने वाले – साथ म दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है इनकी पूजा करने से ब्रह्मांड के समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं।
  8. महागौरी – सफेद रंग वाली मां – मां दुर्गा जी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है इनकी शक्ति अमोघ हैं। महागौरी जी की पूजा करने से भक्तों के सभी पाप का नाश हो जाता है।
  9. सिद्धिदात्री – सबको सिद्धि देने वालेे – सिद्धिदात्री मां मां दुर्गा जी की नौवीं शक्ति का नाम है। नवरात्रि के नौवे दिन कन्या पूजन होता है जिसमें 9 कन्याओं की पूजा होती है इन नौ कन्याओं को देवी दुर्गा के नौ रूपों के रूप में माना जाता है।

नवरात्रि पर्व से जुड़ी कहानियां।

  • पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर ने बहुत कठिन तपस्या करके देवताओं से कभी ना, किसी से भी ना, हारने वाला यानी अजय होने का वरदान ले लिया। वरदान देने के बाद देवताओं को चिंता हुई की अब महिषासुर अपने शक्ति का गलत इस्तेमाल करेगा। महिषासुर ने नर्क का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया यह सब देवता डर गए। महिषासुर ने सूर्य इंद्र वायु अग्नि चंद्रमा पर और और अन्य सभी देवताओं के अधिकार छीन लिया और स्वयं स्वर्ग लोक का राजा बन गया। तब देवताओं ने देवी दुर्गा की रचना की। सभी देवताओं ने अपने अस्त्र-शस्त्र देवी दुर्गा को दिए और इन 9 दिनों मैं देवी दुर्गा और महिषासुर में महासंग्राम हुआ जिसके अंत में महिषासुर का वध करके देवताओं को मुक्ति दिलवाई तभी से नवरात्र मनाने की प्रथा चली आ रही है।
  • लंका युद्ध में भगवान राम ने रावण वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी दुर्गा जी को प्रसन्न किया था।

नवरात्रि में घड़े ( कलश) की स्थापना की विधि।

नवरात्रि के दौरान कलश स्थापना करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। कलश को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है इसलिए नवरात्रि पूजा से पहले कलश की स्थापना की जाती है।

सबसे पहले मिट्टी के चौड़े मुंह वाले बर्तन को रखें और उसमें पवित्र स्थान की मिट्टी डाल कर सात प्रकार के अनाज की बुवाई करें।

अब उसके ऊपर एक कलश में जल भरकर रखते है उसकी गर्दन पर ऊपरी भाग में कलावा बांधे। कलश के ऊपर आम या अशोक के पत्तों को रखें।

अब एक जटा वाला नारियल ले, उसके ऊपर कलावा लपेटे, उसके बाद नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर आम या अशोक के पत्तों के बीच में रख दें।

घड़े की स्थापना होने के बाद मां दुर्गा का आवाहन करें।

नवरात्रि के दौरान ध्यान रखें।

  • नवरात्रि के दिनों में मांस मदिरा लहसुन प्याज आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • इन दिनों घर में किसी भी तरह की लड़ाई झगड़े या अपमान नहीं करना चाहिए कहते हैं ऐसा करने से मां दुर्गा नाराज हो जाते हैं।
  • नवरात्रि में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए नवरात्रि के दिनों में सूरज उगने से पहले स्नान आदि करके साफ कपड़े धारण करना चाहिए।
  • नवरात्रि में काले रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए साथ साथ ही चमड़े के बेल्ट या जूते आधे नहीं पहनना चाहिए।
  • नवरात्रि के दौरान बाल दाढ़ी और नाखून नहीं काटने चाहिए तथा हो सके तो इस दौरान बिस्तर पर नहीं बल्कि जमीन पर सोना चाहिए।
  • किसी का भी अपमान करने से बचना चाहिए।

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