रमजान के पाक महीने के खत्म होते ही अल्लाह तआला मुसलमानों को ईद मनाने का मौका अता करता है। मगर क्या आपने कभी यह सोचा है कि ईद का इतिहास क्या है? मुसलमान ईद क्यों मनाते हैं? सबसे पहली ईद कब और क्यों मनाई गई थी? आइए, इस लेख में ईद का पूरा इतिहास और इसका असल मकसद समझते हैं।
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सबसे पहली ईद का इतिहास
इस्लाम के इतिहास के अनुसार, दुनिया में सबसे पहली ईद उस दिन मनाई गई थी जब हजरत आदम (अलैहि सलाम) की तौबा कबूल हुई थी। इसके अलावा, कुछ अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं पर भी ईद मनाई गई:
- जिस दिन हाबील और क़ाबिल की जंग खत्म हुई थी।
- जब हजरत इब्राहिम (अलैहि सलाम) पर नमरूद दाद की आग ठंडी हो गई थी।
- जब हजरत यूनुस (अलैहि सलाम) को मछली की कैद से रिहाई मिली थी।
- जब हजरत मूसा (अलैहि सलाम) ने बनी इस्राइल को फिरौन के जुल्म से निजात दिलाई थी।
- जब हजरत ईसा (अलैहि सलाम) का जन्म हुआ था।
ईद-उल-फितर की शुरुआत
आज पूरी दुनिया के मुसलमान रमजान के बाद एक शव्वाल को ईद-उल-फितर मनाते हैं। इस ईद की शुरुआत अल्लाह के प्यारे नबी हजरत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने सन 624 ईसवी में जंगे-बदर की फतह के बाद की थी। मदीना के लोग पहले से दो त्यौहार मनाते थे, लेकिन जब रसूल-ए-पाक (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मदीना आए, तो उन्होंने फरमाया कि अल्लाह ने तुम्हारे लिए इनसे बेहतर दो त्यौहार (ईद-उल-फितर और ईद-उल-अज़हा) दिए हैं।
ईद-उल-फितर का मकसद
रमजान इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महीना है, जिसमें मुसलमान रोजे रखते हैं, इबादत करते हैं और अल्लाह से मगफिरत की दुआ मांगते हैं। ईद-उल-फितर इस्लाम की नेमतों और रमजान की इबादतों का इनाम है। इस दिन मुसलमान अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं और गुनाहों से महफूज रहने की दुआ करते हैं।
ईद हमें क्या पैगाम देती है?
- भाईचारे और मोहब्बत का संदेश: ईद हमें सिखाती है कि जैसे हम इस दिन खुश होते हैं, वैसे ही हमें हर दिन एक-दूसरे के साथ प्यार और मोहब्बत से पेश आना चाहिए।
- गरीबों की मदद: ईद से पहले फितरा देना वाजिब होता है, ताकि गरीब लोग भी ईद की खुशियों में शामिल हो सकें।
- यतीमों और जरूरतमंदों की देखभाल: रसूल-ए-पाक (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की एक घटना हमें सिखाती है कि हमें अपने आसपास के यतीम और गरीब बच्चों का ख्याल रखना चाहिए।
रसूल-ए-पाक और यतीम बच्चे की कहानी
एक बार ईद के दिन अल्लाह के प्यारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने एक उदास यतीम बच्चे को देखा, जिसने कहा कि उसके माता-पिता नहीं रहे और वह नए कपड़े नहीं पहन सकता। यह सुनकर नबी-ए-करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उसे अपने घर ले जाकर नहलाया, नए कपड़े पहनाए, और अपने कंधे पर बिठाकर ईदगाह ले गए। इस वाकये से हमें सीख मिलती है कि हमें अपने आसपास जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए।
निष्कर्ष
ईद सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी भी है। इस दिन हमें गरीबों और यतीमों की मदद करनी चाहिए और समाज में भाईचारे को बढ़ावा देना चाहिए। इस ईद पर अपने लिए नए कपड़े खरीदते समय यह भी देखें कि क्या आपके आसपास कोई ऐसा है जिसे आपकी मदद की जरूरत हो।
अल्लाह हम सबको ईद की असल अहमियत समझने और इसे नेकियों के साथ मनाने की तौफीक अता फरमाए।
ईद मुबारक!