Mahashivratri || महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि का दिव्य महात्म्य और पूजन विधि

हर हर महादेव! जय भोलेनाथ!

महाशिवरात्रि का पर्व समस्त शिवभक्तों के लिए अत्यंत पवित्र और मंगलकारी माना जाता है। इस दिन भगवान शिव संपूर्ण सृष्टि में स्थित शिवलिंगों में दिव्य रूप से समाहित होकर भक्तों की पूजा स्वीकार करते हैं। इस शुभ अवसर पर भगवान श्री हरि विष्णु भी महादेव की आराधना करते हैं।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। इसके अलावा, प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह शिव और शक्ति के मिलन की रात मानी जाती है। आधुनिक दृष्टिकोण से, इसे प्रकृति (शक्ति) और पुरुष (शिव) के मिलन की रात के रूप में भी देखा जाता है। इस दिन व्रत रखकर भक्त अपने आराध्य भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, और मंदिरों में दिनभर जलाभिषेक का आयोजन होता है।

वेद ऋषियों द्वारा रचित शिव महापुराण में महाशिवरात्रि का महत्व और उसकी दिव्यता का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसी पावन ग्रंथ के अनुसार, आज हम आपको महाशिवरात्रि से जुड़ी विशेष जानकारी प्रदान करेंगे।

महाशिवरात्रि का महत्व और उत्पत्ति

वर्ष में कुल बारह शिवरात्रियां आती हैं, जो प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को पड़ती हैं। लेकिन फाल्गुन मास में आने वाली शिवरात्रि को विशेष रूप से महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है।

इस पर्व को लेकर हिंदू धर्म में विभिन्न मान्यताएं प्रचलित हैं—

  1. भगवान शिव का जन्मदिवस – कई भक्त इस दिन को भगवान शिव के अवतरण दिवस के रूप में मानते हैं।
  2. विषपान दिवस – कुछ मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष का पान कर समस्त सृष्टि की रक्षा की थी।
  3. शिव-पार्वती विवाह दिवस – इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का पवित्र विवाह संपन्न हुआ था।

भगवान शिव के दो रूप और ज्योतिर्लिंग का प्राकट्य

शिव महापुराण के अनुसार, महर्षि शौनक और अन्य ऋषियों ने सूतजी से भगवान शिव के दो रूपों के विषय में प्रश्न किया। तब सूतजी ने उत्तर दिया कि—

  • भगवान शिव “निराकार” स्वरूप में ब्रह्मतत्व हैं, जिन्हें शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है।
  • भगवान शिव “साकार” रूप में मूर्ति के रूप में प्रकट होते हैं, और इस रूप में उनकी उपासना की जाती है।

भगवान शिव के निराकार और साकार दोनों रूपों की उपासना का विशेष महत्व है, क्योंकि अन्य देवताओं का लिंगस्वरूप में पूजन नहीं किया जाता।

महाशिवरात्रि पर पूजन विधि एवं फल

महाशिवरात्रि के दिन भक्तगण सच्चे मन से भगवान शिव की आराधना करते हैं और शिवलिंग पर विभिन्न पूजन सामग्री अर्पित करते हैं—

  • दूध, जल और पंचामृत से अभिषेक
  • बेलपत्र, धतूरा, फल-फूल, मिष्ठान अर्पित करना
  • चंदन और अगरु का लेपन
  • धूप, दीप, कपूर एवं गूगल की सुगंधित धूप से पूजन

इस दिन की गई पूजा से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को सुख, सौभाग्य, रोजगार, समृद्धि और मोक्ष का वरदान प्रदान करते हैं।

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महाशिवरात्रि का संदेश

यह पर्व हमें भक्ति, श्रद्धा और आत्मशुद्धि का संदेश देता है। भगवान शिव के आशीर्वाद से हर भक्त के जीवन में सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।

  • यह पर्व आत्मचिंतन, ध्यान और भक्ति का प्रतीक है।
  • शिव भक्त इस दिन उपवास रखते हैं और रात्रि जागरण करते हुए भगवान शिव की आराधना करते हैं।
  • शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र और धतूरा अर्पित कर शिव की कृपा प्राप्त करने की कामना की जाती है।

महाशिवरात्रि से जुड़ी पौराणिक घटनाएं

महाशिवरात्रि केवल व्रत और पूजा का पर्व नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई पौराणिक घटनाएं भी जुड़ी हैं, जो इस दिन को विशेष बनाती हैं:

1. भगवान शिव का प्रकट होना

पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव पहली बार प्रकट हुए थे। एक समय, भगवान विष्णु और ब्रह्माजी के मध्य श्रेष्ठता को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। यह देख देवता अत्यंत चिंतित हो गए और उन्होंने कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान महादेव का स्तवन किया। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने एक विशाल अग्नि स्तंभ के रूप में स्वयं को प्रकट किया, जिसकी कोई आदि और अंत नहीं था

ब्रह्मा जी ने हंस का रूप लेकर उस ज्योतिर्लिंग के सबसे ऊपरी भाग को देखने का प्रयास किया, लेकिन वे वहां तक नहीं पहुंच सके।भगवान विष्णु ने वराह (सूअर) का रूप लेकर ज्योतिर्लिंग के आधार को ढूंढने की कोशिश की, लेकिन उन्हें भी अंत नहीं मिला।
इससे यह सिद्ध हुआ कि भगवान शिव अनादि और अनंत हैं।


2. शिव और शक्ति का महामिलन

महाशिवरात्रि को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह भी हुआ था।इस दिन शिव ने वैराग्य (संन्यास) छोड़कर गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया था।इस घटना की याद में कई स्थानों पर शिव बारात निकाली जाती है, और शिव-पार्वती के विवाह का आयोजन भी होता है।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान शिव और पार्वती के विवाह का उत्सव मनाने से वैवाहिक जीवन की समस्याएं दूर होती हैं और दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि आती है।


3. द्वादश ज्योतिर्लिंगों का प्रकट होना

पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन ही बारह ज्योतिर्लिंगों का प्रकट्य हुआ था। ये द्वादश ज्योतिर्लिंग हैं:

सोमनाथ (गुजरात)
मल्लिकार्जुन (आंध्र प्रदेश)
महाकालेश्वर (मध्य प्रदेश)
ओंकारेश्वर (मध्य प्रदेश)
केदारनाथ (उत्तराखंड)
भीमाशंकर (महाराष्ट्र)
काशी विश्वनाथ (उत्तर प्रदेश)
त्र्यंबकेश्वर (महाराष्ट्र)
वैद्यनाथ (झारखंड)
नागेश्वर (गुजरात)
रामेश्वरम (तमिलनाडु)
घृष्णेश्वर (महाराष्ट्र)

इन 12 ज्योतिर्लिंगों के प्रकट होने के उपलक्ष्य में महाशिवरात्रि मनाई जाती है और भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है।महाशिवरात्रि न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह आत्मज्ञान, आध्यात्मिक जागृति और शिव-शक्ति के मिलन का प्रतीक भी है। यह दिन भक्तों को शिव की अनंत महिमा का स्मरण कराता है और उन्हें भक्ति, संयम एवं साधना के मार्ग पर अग्रसर करता है।

जय महादेव! जय भोलेनाथ! हर हर महादेव!

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